Search This Blog

Wednesday, October 27, 2021

ऐ मिरी जान इसी घर को तू जन्नत कह दे

 

ऐ मिरी जान इसी घर को तू जन्नत कह दे 

ज़िन्दगी साथ बिताने को मुहब्बत कह दे

Ai mirii jaan isii ghar ko tu jannat kah de

Zindagii saath bitaane ko mohabbat kah de

 

रूह से रूह की दूरी भी कभी नापेंगें 

पास बैठे हैं अभी ज़ीस्त को सोहबत कह दे

Ruuh se ruuh ki duurii bhi kabhii naape.nge.n

Paas baiTHe hai.n abhii ziist ko sohbat kah de

 

शाम सूरज का समन्दर में उतरना तन्हा 

हाथ में हाथ ज़रा थाम के चाहत कह दे

Shaam suuraj ka samandar me.n utarnaa tanhaa

Haath me.n haath zaraa thaam ke chaahat kah e

 

मेरे ख़्वाबों को तू ता'बीर का ताना तो न दे  

कुछ नहीं तो इन्हें इम्कान-ए-हक़ीक़त कह दे 

Mere KHvaabo.n ko tu taabiir ka taanaa to na de

Kuchh nahii.n to inhe.n imkaan-e-haqiiqat kah de 

 

तू तसव्वुर है हक़ीक़त में रहा करती है 

कोई पूछे जो पता मुझको सुकूनत कह दे 

Tuu tasavvur hai haqiiqat me.n rahaa kartii hai

Koi puuchhe jo pataa mujhko sukuunat kah de

 

ढाल सकता हूँ क़यामत का नशा साग़र में 

ज़र्फ़-ए-बातिन में जगह ख़ूब तो वुस'अत कह दे 

DHaal saktaa hu.n qayaamat ka nashaa saaGar me.n

Zarf-e-baatin me.n jagah KHuub to vus’at kah de

 

आइना-ख़ाना-ए-दुनिया में ख़ुदी का ये हुजूम 

कम से कम तू तो मिरी बूद को नुदरत कह दे

Aainaa-KHaana-e-duniyaa me.n KHudii kaa ye hujuum

Kam se kam tuu to mirii buud ko nudrat kah de

 

एक होता तो वो आलम के सिवा क्या होता 

दो की मौजूदगी क़ुदरत की शरारत कह दे 

Ek hotaa to vo aalam ke sivaa kyaa hotaa

Do ki maujuudagi qudrat ki sharaarat kah de

 

लोग तो खेल समझते हैं इन्हें लफ़्ज़ों का 

मेरी ग़ज़लों को तू आशिक़ की बसीरत कह दे  

Log to khel samajhte hai.n inhe.n lafzo.n kaa

Meri ghazalo.n ko tu aashiq ki basiirat kah de

 

- Ravi Sinha

--------------------------------------------------------------

ज़ीस्त – ज़िन्दगी; ता'बीर – अर्थ; इम्कान-ए-हक़ीक़त – यथार्थ की सम्भावनायें; सुकूनत – निवास; ज़र्फ़-ए-बातिन – अन्तरात्मा का बर्तन; वुस'अत – आयतन; आइना-ख़ाना-ए-दुनिया – दुनिया रुपी शीशाघर; बूद – अस्तित्व; नुदरत – अनोखापन; बसीरत – अंतर्दृष्टि

Ziist – life; Sohbat – togetherness; Taabiir – interpretation; Imkaan-e-haqiiqat – possibilities of the real; Tasavvur – imagination; Sukuunat – residence; Zarf-e-baatin – pot of the soul; Vus’at – volume; Aainaa-KHaana-e-duniyaa – mirror-house of the world; Buud – existence; Nudrat – rarity, newness; Basiirat – inner eye

2 comments:

  1. एक होता तो वो आलम के सिवा क्या होता
    दो की मौजूदगी क़ुदरत की शरारत कह दे
    ढाल सकता हूँ क़यामत का नशा साग़र में
    ज़र्फ़-ए-बातिन में जगह ख़ूब तो वुस'अत कह दे .........


    बेहद खूबसूरत, पुर-असर और पुर-असरार .... ग़ज़ल 🙏

    ReplyDelete