Search This Blog

Thursday, November 29, 2018

वक़्त को मुख़्तलिफ़ रफ़्तार से चला लेंगें


वक़्त को मुख़्तलिफ़ रफ़्तार से चला लेंगें 
आज हर लम्हे की मीआद हम बढ़ा लेंगें 
Waqt ko muKHtaliF raFtaar se chalaa lenge.n
Aaj har lamhe kii mii'aad ham baDha lenge.n

गर्मिये-ज़ीस्त पर बादे-ख़िज़ाँ के झोंके हैं  
बुझ गया दिन अगर तो शाम ये सुलगा लेंगें 
Garmiye-ziist par baade-KHizaa.n ke jho.nke hai.n
Bujh gayaa din agar to shaam ye sulgaa lenge.n

क़ायदे खेल के हैं खेल में ही खो जाना
राह क्या ढूँढना मंज़िल यहीं बना लेंगें
Qaa.ede khel ke hai.n khel me.n hi kho jaanaa
Raah kyaa Dhuu.nDhanaa manzil yahii.n banaa lenge.n

रौशनी ओढ़ के सोता है अँधेरे का शहर 
बज़्मे-बेदार में कुछ और हम जला लेंगें 
Raushnii oDh ke sotaa hai andhere ka shahar
Bazm-e-bedaar me.n kuchh aur ham jalaa lenge.n 

वक़्त दरिया हुआ तैराक कुछ हुए हम भी 
और हाइल हुए तो शक्ले-जाविदाँ लेंगें  
Waqt dariyaa hua tairaak kuchh hue ham bhii
Aur haa'il hue to shakl-e-jaavidaa.n lenge.n

- Ravi Sinha

----------------------------------------------------------------
मुख़्तलिफ़ (muKHtaliF) - अलग अलग (varying); मीआद (miiyaad) - विस्तार (range); गर्मिये-ज़ीस्त (garmiye-ziist) - जीवन की गर्माहट (warmth of life); बादे-ख़िज़ाँ (baad-e-KHizaa.n) - पतझड़ की हवा (autumn winds); बज़्मे-बेदार (bazm-e-bedaar) - जागने वालों की महफ़िल (assembly of the awake); हाइल (haa'il) - रुकावट (obstacle); शक्ले-जाविदाँ (shakl-e-jaavidaa.n) - शाश्वत या चिरन्तन का रूप (form or shape of eternal)
----------------------------------------------------------------------


No comments:

Post a Comment