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Wednesday, January 23, 2019

शाम उतरी है जगाओ पीरे-उम्रे-दराज़ को

शाम उतरी है जगाओ पीरे-उम्रे-दराज़ को 
ख़िरद का ताइर वहाँ तैयार है परवाज़ को 
Shaam utarii hai jagaao piir-e-umr-e-daraaz ko
KHirad kaa taa’ir vahaa.n tayyaar hai parvaaz ko

वक़्त जब पैदा हुआ था नुक़्ते में थी कायनात 
कहकशाँ के तुख़्म हासिल थे दमे-एजाज़ को 
Vaqt jab paidaa huaa thaa nuqte me.n thii kaainaat
Kahkashaa.n ke tuKHm haasil the dam-e-ejaaz ko

वुस'अते-आलम बहुत इम्काने-हस्ती बेहिसाब 
क्या शिकायत कीजिये फिर ज़ीस्त के ईजाज़ को
Vus’at-e-aalam bahut imkaan-e-hastii behisaab
Kyaa shikaayat kiijiye phir ziist ke iijaaz ko

मुनफ़रिद औलाद है क़ुदरत की औ तहज़ीब की 
जो क़बीले जज़्ब कर लें फ़र्द के एज़ाज़ को
Munfarid aulaad hai qudrat ki au tahziib kii
Jo qabiile jazb kar le.n fard ke ezaaz ko    

क्यूँ तख़य्युल हो असीरे-ख़ाक सुन ऐ ख़ाकज़ाद 
दे बुलन्दी ख़ल्क़ में तख़्लीक़ की आवाज़ को 
Kyuu.n taKHayyul ho asiir-e-KHaak sun ai KHaakzaad
De bulandii KHalq me.n taKHliiq kii aavaaz ko

सुख़नवर बेआबरू होकर गया है बज़्म से 
कुछ तसल्ली तो हुई तन्क़ीद के शहबाज़ को
SuKHanvar be-aabruu hokar gayaa hai bazm se
Kuchh tasallii to huii tanqiid ke shahbaaz ko 

वो जदीदी दौर में कुछ यूँ सुख़न करते रहे
खेंच देते थे ख़ला पर पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ को
Vo jadiidii daur me.n kuchh yuu.n suKHan harte rahe
Khe.nch dete the KHalaa par parda-e-alfaaz ko 

नक़्श-ए-ता'मीर अब फिर से बनाना चाहिए 
गर ज़माना सुन रहा है बस ज़माना-साज़ को 
Naqsh-e-taa’miir ab phir se banaanaa chaahiye
Gar zamaanaa sun rahaa hai bas zamaanaa-saaz ko

छीन लेता है निवाला दहने-मुफ़लिस से ख़ुदा 
मालो-ज़र देता है वो इस दौर में मरताज़ को
Chhiin letaa hai nivaalaa dahn-e-muflis se KHudaa
Maal-o-zar detaa hai vo is daur me.n martaaz ko 

हाल ये जम्हूरियत का हो गया हर मुल्क में 
अब सियासत दे बढ़ावा ख़ल्क़ के अमराज़ को 
Haal ye jamhuuriyat kaa ho gayaa har mulk me.n
Ab siyaasat de baDHaavaa KHalq ke amraaz ko

लाज़िमी है के कहीं पर ख़त्म हो गुफ़्तो-शुनीद 
गरचे मक़्ता ये मचलता है नए आग़ाज़ को
Laazimii hai ke kahii.n par KHatm ho guft-o-shuniid
Garche maqtaa ye machaltaa hai naye aaGHaaz ko

- Ravi Sinha
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