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Saturday, April 24, 2021

दर्द-ए-दिल दुख में ज़माने के छुपाते आये

दर्द-ए-दिल दुख में ज़माने के छुपाते आये 

अश्क-ओ-जज़्बात में दूरी भी बनाते आये

Dard-e-dil dukh me.n zamaane ke chhupaate aaye

Ashk-o-jazbaat me.n duurii bhi banaate aaye 

 

उसके दीदार की ख़्वाहिश में मिटा दे ख़ुद को

रात को सुब्ह के क़िस्से यूँ सुनाते आये

Uske diidaar ki KHvaahish me.n miTaa de KHud ko

Raat ko sub.h ke qisse yuu.n sunaate aaye 

 

इश्क़ पर ज़ोर चला ज़ीस्त से गुफ़्तार हुई 

कुछ ज़माने के भी दस्तूर निभाते आये 

Ishq par zor chalaa ziist se guftaar huii

Kuchh zamaane ke bhi dastuur nibhaate aaye 

 

रोज़ तज्दीद-ए-मुलाक़ात के इम्काँ तो थे   

रोज़ हम आँख मगर उनसे चुराते आये

Roz tajdiid-e-mulaaqaat ke imkaa.n to the

Roz ham aa.nkh magar unse churaate aaye

 

सिर्र-ए-आलम के मुहाफ़िज़ से बहस थी मेरी 

क्यूँ नहीं सिर्र-ए-मुहब्बत ही बताते आये  

Sirr-e-aalam ke muhaafiz se bahas thii merii

Kyuu.n nahii.n sirr-e-muhabbat hi bataate aaye

 

किस क़दर शाम उतर आती है हर शाम यहाँ

हम तो यादों से मगर शाम सजाते आये

Kis qadar shaam utar aati hai har shaam yahaa.n

Ham to yaado.n se magar shaam sajaate aaye  

 

बह्र-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के जहाज़ी हम हैं 

राह इक़्लीम-ए-जहालत में बनाते आये

Bahr-e-tehziib-o-tamaddun ke jahaazii ham hai.n

Raah iqliim-e-jahaalat me.n banaate aaye 

 

-         Ravi Sinha  

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ज़ीस्त – ज़िन्दगी; गुफ़्तार – बात-चीत; तज्दीद-ए-मुलाक़ात – बहुत दिनों के बाद मेल-जोल का फिर से शुरू होना; इम्काँ – सम्भावनायें; सिर्र – मर्म, भेद; मुहाफ़िज़ – रखवाला;  बह्र-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन – सभ्यता और संस्कृति का सागर;  इक़्लीम-ए-जहालत – मूर्खता और असभ्यता का इलाक़ा 

Ziist – life; Guftaar – conversation; Tajdiid-e-mulaaqaat – renewal of meetings after a long time; Imkaa.n – possibilities; Sirr – secret; Muhaafiz – keepers, protectors; Bahr-e-tehziib-o-tamaddun – the ocean of civilization and culture; Iqliim-e-jahaalat – the continent of the uncultured

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