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Tuesday, June 21, 2022

गुफ़्तगू आप से थमी तो नहीं

गुफ़्तगू आप से थमी तो नहीं 

इस फ़साने में बस हमी तो नहीं 

Guft-o-guu aap se thamii to nahii.n

Is fasaane me.n bas hamii to nahii.n

 

आप तन्हा हैं और हम तन्हा 

ये ज़रूरत भी बाहमी तो नहीं

Aap tanhaa hai.n aur ham tanhaa

Ye zaruurat bhi baahamii to nahii.n

 

शाम-ए-फ़ुरक़त ख़ुदी को तौला है 

अपने होने में कुछ कमी तो नहीं  

Shaam-e-furqat KHudii ko taulaa hai

Apne hone me.n kuchh kamii to nahii.n

 

ग़म तो पत्थर हुए पहाड़ हुए 

अश्क दरिया हों लाज़मी तो नहीं 

Gam to patthar hue pahaaD hue

Ashk dariyaa ho.n laazmii to nahii.n

 

क़हक़हे आप के सुब्हान-अल्लाह 

आँख की कोर में नमी तो नहीं 

Qahqahe aap ke sub.haan-allaah

Aa.nkh kii kor me.n namii to nahii.n

 

साँस लेने से दम निकलता है 

ये तिजारत भी आलमी तो नहीं 

Saa.ns lene se dam nikaltaa hai

Ye tijaarat bhi aalamii to nahii.n

 

क़त्लगाहों सी चीख़ आती है 

देख जंगल में आदमी तो नहीं 

Qatl-gaaho.n si chiiKH aatii hai

Dekh jangal me.n aadmii to nahii.n

 

- Ravi Sinha

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बाहमी – पारस्परिक, आपसी; शाम-ए-फ़ुरक़त – जुदाई की शाम; तिजारत – व्यापार; आलमी – वैश्विक

 

Baahamii – mutual; Sham-e-furqat – an evening of separation from the beloved; Tijaarat – trade; Aalamii – global

 

1 comment:

  1. क़त्ल-गाहों सी चीख़ आती है!
    देख जंगल में आदमी तो नहीं!!

    बेहतरीन ग़ज़ल बनी है, शानदार और धारदार शे र कहे आपने .....

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