अल्फ़ाज़ की
मंज़िल कहीं इरफ़ान से आगे
Chaltii
hai qalam jab kabhii unvaan se aage
Alfaaz ki
manzil kahii.n irfaan se aage
उम्मीद तो
रखिये कि ये वहशत भी थकेगी
सुनते हैं
सुकूँ है कहीं विज्दान से आगे
Ummiid to
rakhiye ki ye vahshat bhi thakegii
Sunte
hai.n sukuu.n hai kahii.n vijdaan se aage
चाहो तो
नये दैर में मूरत भी बिठा लो
जाना है
मगर ख़ल्क़ को भगवान से आगे
Chaaho to
naye dair me.n muurat bhi biTHaa lo
Jaanaa
hai magar KHalq ko bhagvaan se aage
तारीख़ ने
हर बार सज़ा उसको सुनाई
पहुँचा जो
ख़बर ले के वो तूफ़ान से आगे
TaariiKH
ne har baar sazaa usko sunaayii
Pahu.nchaa
jo KHabar le ke vo tuufaan se aage
दुनिया जो
चली थी किसी इन्सान के पीछे
दुनिया का
सफ़र अब उसी इन्सान से आगे
Duniyaa
jo chalii thii kisii insaan ke piichhe
Duniyaa
ka safar ab usii insaan se aage
रोटी की
जगह केक के जुमले पे बग़ावत
फैले तो
कोई बात फिर ऐवान से आगे
RoTii ki
jagah cake ke jumle pe baGaavat
Phaile to
koii baat phir aivaan se aage
ज़ाहिर में
ख़ुदी रक़्स में है बज़्मे-बरहना
बातिन के
सरोकार हैं पहचान से आगे
Zaahir
me.n KHudii raqs me.n hai baz-e-barahnaa
Baatin ke
sarokaar hai.n pahchaan se aage
अब किसको
मसर्रत से ग़रज़ क्यूँ हो तमाशा
निकले जो
हुए हम किसी अरमान से आगे
Ab kisko
masarrat se Garaz kyuu.n ho tamaashaa
Nikle jo
hue ham kisii armaan se aage
तरतीबे-अनासिर से
तसव्वुर की ठनी है
चलते हैं
हक़ीक़त के हर इम्कान से आगे
Tartiib-e-anaasir
se tasavvur ki THanii hai
Chalte
hai.n haqiiqat ke har imkaan se aage
उनवान – शीर्षक; इरफ़ान – विवेक; विज्दान –
हर्षोन्माद; दैर – मन्दिर; ख़ल्क़ – लोग; ऐवान – महल; रक़्स – नृत्य; बज़्मे-बरहना –
नंगों की सभा; बातिन – अन्तर्मन; मसर्रत – आनन्द; तरतीबे-अनासिर – पंचतत्त्व
की संरचना; तसव्वुर – कल्पना; इम्कान – सम्भावना
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