'अहद ढोना है जिसे बे-सर-ओ-सामान तो हो
अब दिल-ए-ज़ार को देता हूँ मैं अक्सर ये दलील
इक अलहिदा सा गुज़र-गाह ख़ला में खेंचो
सुनते आये हैं कि शाहिद से है मंज़र का वजूद
चश्म-ए-बेदार शबिस्ताँ में फिरे हैं अफ़्कार
- Ravi Sinha
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'अहद – युग, ज़माना, प्रतिज्ञा; बे-सर-ओ-सामान – कंगाल;
दिल-ए-ज़ार – दुखी हृदय; गुज़र-गाह – गतिरेखा; ख़ला – अन्तरिक्ष; गर्दान – परिक्रमा;
शाहिद – गवाह; मंज़र – दृश्य; गैहान – संसार, ब्रह्माण्ड; मक़्तल – क़त्ल-गाह;
मुल्क-ए-जम्हूर – जनता का देश; सनमख़ाना – मन्दिर; ख़ल्क़ – जनता; दैर – मन्दिर;
चश्म-ए-बेदार – बिना नींद की आँखें; शबिस्ताँ – शयनकक्ष; अफ़्कार – सोच; शब-गज़ीदा –
जिसे रात ने डँसा हो
‘Ahd – era, promise; Be-sar-o-saamaan – destitute;
Dil-e-zaar – afflicted heart; Guzar-gaah – trajectory; KHalaa – void, space;
Gardaan – revolution, going around; Shaahid – witness; Manzar – scene; Gaihaan –
world, universe; Maqtal – slaughter house; Mulk-e-jamhuur – people’s country;
Sanam-KHaanaa – temple; KHalq – people; Da.ir – temple; Chashm-e-bedaar – with eyes
awake; Shabistaa.n – bedroom; Afkaar – thoughts; Shab-gaziidaa – stung by the
night