'अहद ढोना है जिसे बे-सर-ओ-सामान तो हो
अब दिल-ए-ज़ार को देता हूँ मैं अक्सर ये दलील
इक अलहिदा सा गुज़र-गाह ख़ला में खेंचो
सुनते आये हैं कि शाहिद से है मंज़र का वजूद
चश्म-ए-बेदार शबिस्ताँ में फिरे हैं अफ़्कार
- Ravi Sinha
----------------------------------------------------------------------------
'अहद – युग, ज़माना, प्रतिज्ञा; बे-सर-ओ-सामान – कंगाल;
दिल-ए-ज़ार – दुखी हृदय; गुज़र-गाह – गतिरेखा; ख़ला – अन्तरिक्ष; गर्दान – परिक्रमा;
शाहिद – गवाह; मंज़र – दृश्य; गैहान – संसार, ब्रह्माण्ड; मक़्तल – क़त्ल-गाह;
मुल्क-ए-जम्हूर – जनता का देश; सनमख़ाना – मन्दिर; ख़ल्क़ – जनता; दैर – मन्दिर;
चश्म-ए-बेदार – बिना नींद की आँखें; शबिस्ताँ – शयनकक्ष; अफ़्कार – सोच; शब-गज़ीदा –
जिसे रात ने डँसा हो
‘Ahd – era, promise; Be-sar-o-saamaan – destitute;
Dil-e-zaar – afflicted heart; Guzar-gaah – trajectory; KHalaa – void, space;
Gardaan – revolution, going around; Shaahid – witness; Manzar – scene; Gaihaan –
world, universe; Maqtal – slaughter house; Mulk-e-jamhuur – people’s country;
Sanam-KHaanaa – temple; KHalq – people; Da.ir – temple; Chashm-e-bedaar – with eyes
awake; Shabistaa.n – bedroom; Afkaar – thoughts; Shab-gaziidaa – stung by the
night
Kyaa balandii hai siyaasat ke sanamKHaane kii
ReplyDeleteWah Ravi ji kya baat hai. Aur lagta hai puri dunya ka hi ye haal ho chuka ab.
Ho zor-e-qalam aur ziyada